Biography of Swami Vivekananda in Hindi स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय
स्वामी विवेकानंद, एक श्रद्धेय संत, दार्शनिक और हिंदू धर्म के समर्थक थे, उनकी विरासत आज भी अनगिनत लोगों को प्रेरित करती है। उनकी गहन शिक्षाएँ, व्यावहारिक विचार और अनुकरणीय कार्य सभी क्षेत्रों के लोगों के लिए मार्गदर्शन की किरण के रूप में काम करते हैं। अगले खंडों में, हम स्वामी विवेकानंद के जीवन की पेचीदगियों पर चर्चा करेंगे और उन असंख्य तरीकों का पता लगाएँगे जिनसे उन्होंने दुनिया पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
- नाम: स्वामी विवेकानंद
- उपनाम: नरेंद्र एवं नरेन
- जन्म तारीख: 12 जनवरी 1863
- जन्म स्थान: कोलकाता, पश्चिम बंगाल
- वंशावली: बंगाली
- पिता का नाम: विश्वनाथ दत्त
- माता का नाम: भुवनेश्वरी देवी
- पत्नी का नाम: अविवाहित थे
- गुरु: रामकृष्ण परमहंस
- भाई का नाम: भूपेंद्रनाथ दत्त
- संघटन: वेदांत सोसायटी, अद्वैत आश्रम, शांति आश्रम
- पेशा: धर्मगुरु
- संस्थापक: रामकृष्ण मिशन एवं रामकृष्ण मठ
- देश: भारत
- धर्म: हिंदू
- राष्ट्रीयता: भारतीय
- भाषा: संस्कृत, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, अरबी
- मृत्यु स्थान: बेलूर मठ
- जीवन काल: 39 वर्ष
- मृत्यु का तारीख: 4 जुलाई 1902
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
स्वामी विवेकानंद, जिनका मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में एक मध्यम आय वाले परिवार में जन्मे। उनके पिता विश्वनाथ दत्त एक वकील थे, जिन्होंने पश्चिमी मूल्यों को अपनाया, जबकि उनकी माँ भुवनेश्वरी देवी धार्मिक मान्यताओं में गहरी आस्था रखती थीं। बचपन से ही अपनी बुद्धिमत्ता और शरारती स्वभाव के लिए जाने जाने वाले नरेंद्रनाथ अपने पालन-पोषण के आध्यात्मिक माहौल और अपने माता-पिता की शिक्षाओं से बहुत प्रभावित थे।
स्वामी विवेकानंद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर के स्कूल में प्राप्त की और उसके बाद कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। शिक्षाविदों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के अलावा, उन्होंने कुश्ती के प्रति भी जुनून दिखाया। इसके अतिरिक्त, विवेकानंद ने अपने प्रारंभिक वर्षों के दौरान पश्चिमी दर्शन और ईसाई धर्म में रुचि दिखाई।
आध्यात्मिक यात्रा
स्वामी विवेकानंद की आध्यात्मिक यात्रा तब शुरू हुई जब उन्होंने 1881 में रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात की। रामकृष्ण परमहंस के साथ उनके संवाद ने उनकी आत्मा को गहरे तक प्रभावित किया। रामकृष्ण ने उन्हें स्वामी विवेकानंद नाम दिया और उनके आध्यात्मिक पथ पर मार्गदर्शन किया। स्वामी विवेकानंद ने 25 वर्ष की आयु में संन्यास लिया और अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के साथ रहकर अध्यात्म की गहराइयों में उतर गए।
विश्व धर्म महासभा में भागीदारी
स्वामी विवेकानंद का शिकागो में 1893 में विश्व धर्म महासभा में दिया गया भाषण इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना बन गया। "मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों" के संबोधन ने वहां उपस्थित सभी लोगों का दिल जीत लिया। इस भाषण ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई और वेदांत और योग के संदेश को पश्चिमी दुनिया तक पहुँचाया। उन्होंने हिंदू धर्म के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया और भारतीय संस्कृति और धर्म की महानता को विश्व के सामने रखा।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना
स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस मिशन का उद्देश्य प्रैक्टिकल वेदांत का प्रचार-प्रसार करना था। रामकृष्ण मिशन विभिन्न सामाजिक कार्यों में संलग्न है, जैसे कि स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, छात्रावास और ग्रामीण विकास। इसके अलावा, उन्होंने बेलूर मठ की स्थापना की, जो आज भी रामकृष्ण मिशन का प्रमुख केंद्र है। यह मठ व्यक्तिगत रोशनी और सामाजिक सेवा को समान महत्व देता है और धर्म, नस्ल या जाति के किसी भी भेदभाव के बिना सभी पुरुषों के लिए खुला है।
प्रमुख पुस्तकें
- हिन्दू धर्म
- राजयोग
- कर्मयोग
- प्रेम योग
- ज्ञानयोग
- मरणोत्तर जीवन
- शिक्षा
- भक्तियोग
सिद्धांत और शिक्षाएँ
स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन काल में कई महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता का महत्व: स्वामी विवेकानंद ने लोगों को आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया।
- निर्भय होकर जीवन जीना: उन्होंने अपने जीवन में निर्भय होकर सभी समस्याओं का सामना करने की शिक्षा दी।
- अपने शब्दों पर विश्वास: उन्होंने लोगों को अपने शब्दों पर विश्वास करने की प्रेरणा दी, जिससे स्वाभिमान में वृद्धि हो सके।
- बहादुरी का महत्व: उन्होंने भाई-बहनों को बहादुर बनने के महत्व को समझाया।
अनमोल वचन
- "जब तक जीना, तब तक सीखना, अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।"
- "उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाए।"
- "जो तुम सोचते हो वो हो जाओगे। यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो, तुम कमजोर हो जाओगे।"
- "एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।"
- "सबसे बड़ा धर्म है, अपने स्वभाव के प्रति सच्चा होना। स्वयं पर विश्वास करो।"
मृत्यु
4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद का निधन बेलूर मठ में ध्यान करते समय हुआ। उनकी उम्र उस समय मात्र 39 वर्ष थी, लेकिन उनका जीवन और शिक्षाएँ आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षण तक ध्यान और साधना में लीन रहे। उनके द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन आज भी उनके आदर्शों और सिद्धांतों का पालन करते हुए समाज सेवा में संलग्न है।
निष्कर्ष
स्वामी विवेकानंद का जीवन आज भी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है। उनके गहन दर्शन, शिक्षाएं और सिद्धांत हमारे दैनिक जीवन में मार्गदर्शन और ज्ञान प्रदान करते हैं। उनके विचारों के माध्यम से, हम आत्मविश्वास, स्वतंत्रता और बहादुरी के महत्व को सीखते हैं। उनकी विरासत और योगदान हमेशा हमारे लिए प्रेरणा और प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
- Q.स्वामी विवेकानंद का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
- A.स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था।
- Q. स्वामी विवेकानंद का असली नाम क्या था?
- A. स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था।
- Q. स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम क्या था?
- A. स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था।
- Q.स्वामी विवेकानंद ने किस सम्मेलन में भाग लिया था और कब?
- A. स्वामी विवेकानंद ने 1893 में शिकागो में विश्व धर्म महासभा में भाग लिया था।
- Q. रामकृष्ण मिशन की स्थापना कब और किसने की?A.रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 को की थी।
- Q. स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कब और कहाँ हुई थी?
- A. स्वामी विवेकानंद की मृत्यु 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ में हुई थी।
- Q. स्वामी विवेकानंद ने कौन-कौन सी पुस्तकें लिखी थीं?
- A. स्वामी विवेकानंद ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी थीं, जिनमें हिन्दू धर्म, राजयोग, कर्मयोग, प्रेम योग, ज्ञानयोग आदि शामिल हैं।
- Q. स्वामी विवेकानंद का प्रसिद्ध नारा क्या था?
- A. स्वामी विवेकानंद का प्रसिद्ध नारा था, "उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।"
